वक्फ का काम एक बड़े नेकी का काम है , इस काम को हुस्न खुबी के साथ अंजाम दें।
(हमें वक्फ के मामले में इस बात का एहसास रहना चाहिए कि यह वक्फ जिन लोगों ने किया है, मसाजिद और मदरसों के लिए या कब्रिस्तानों के लिए , तो यह किसी एक फर्द वाहेद के नाम नहीं है , वो तो देख रेख और इनतेज़ामात के लिए होते हैं , ट्रस्ट द्वारा काम चलाया जाता है , लेकिन जायदाद वक्फ होती है अल्लाह के लिए दूसरे मायने यह है , कि यह सारी प्रोपर्टी अल्लाह की है ,इस का मालिक वह खुद है , इसलिए इसका सही इस्तेमाल होना चाहिए")
मोहतरम ! क़ाज़ी साहब , आप के जज़्बात की हम कद्र करते हैं , लेकिन आप से एक सवाल करने की जसारत कर रहा हूं , कि , वक्फ बोर्ड से आप या मिल्लत के जिन ट्रस्टीयान को जो भी तकलीफ़ पहूंची है , तो क्या उन लोगों ने ज़िम्मेदाराना के सामने अपनी शिकायात रखीं ? , और अगर शिकायत वो करते रहे हैं , तो उनकी शिकायतों पर कभी विचार किया गया या नहीं ? मैं इसलिए यह बात कह रहा हूं कि अक्सर अखबारों में लिखने वाले लोग तो अखबार के लिए मैटर की तलाश में रहते ही हैं , और कभी कभी किसी बात की तहकीक भी नहीं की जाती , और कुछ लोग हैं कि सुनी सुनाई बातों को ईशयु बना लेते हैं , इस तरह काम करने वालों के काम में रुकावट तो हैती है ,साथ ही बदनामी ,और फिर सरकार को क्या आप की शिकायात को सुन कर वो अधिकारियों का तबादला कर दें , और फिर महिनों कोई नया अधिकारी नहीं आता , जिस से सभी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है , इसलिए बेहतर है किइस तरह पेपरबाज़ी से दूर रहा जाए ,और जो भी शिकायतें हैं , जिम्मेदारों के सामने रखीं जाएं , और इफहाम वह तफहीम का रास्ता इख्तियार किया जाए, बहुत ही ज़रीरुरी मामला हो तो उसे लिख कर दें ,वरना मुलाकात कर के मामलात ठीक करने की कोशिश की जाए , यह पहले मरहले से गुज़रने की लोग ज़रूरत ही महसूस नहीं करते , और यही वजह है कि अधिकारीयों में ज्यादा चेंज नहीं आता ,वो तो सरकारी नौकरी पर हैं , उन का तबादला होते रहता है ,
हमें वक्फ के मामले में इस बात का एहसास रहना चाहिए कि यह वक्फ जिन लोगों ने किया है, मसाजिद और मदरसों के लिए या कब्रिस्तानों के लिए , तो यह किसी एक फर्द वाहेद के नाम नहीं है , वो तो देख रेख और इनतेज़ामात के लिए होते हैं , ट्रस्ट द्वारा काम चलाया जाता है , लेकिन जायदाद वक्फ होती है अल्लाह के लिए दूसरे मायने यह है , कि यह सारी प्रोपर्टी अल्लाह की है ,इस का मालिक वह खुद है , इसलिए इसका सही इस्तेमाल होना चाहिए ,
यह भी याद रखिए कि जो लोग भी इस के इनतेज़ामात में लगे हैं , यदि उन की नौकरी भी है , तो वो सब अपने नौकरी और पेमेंट के अलावा , बहुत बड़ा नेकी का काम भी वो अनजाम दे रहें हैं , ट्रस्ट की इन जायदादों की हिफाज़त करना ,और उन का सही इस्तेमाल करना यह सब नेकी के काम हैं
इन कामों को नेकी का काम समझ कर भी करना चाहिए ,
और जो लोग भी वक्फ के कामों के लिए आते हैं ,अगर वो अल्लाह की खातिर और अपने किसी मफाद के लिए काम नहीं कर रहें हैं तो ,उन की यह ख़िदमात भी बहुत बड़ी नेकी की राह में है ,हर हर क़दम पर सवाब है ,
हां अलबत्ता ज़िमदारों को इस बात का भी ख्याल रहना चाहिए कि जो लोग बाहर से आते हैं ,और आफिस के कामों में देर होती है तो उन लोगों के लिए कम अज़ कम बैठने की सहुलत भी होनी चाहिए , और तमाम ही कर्मचारियों ने इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उन के पास कोई आम आदमी नहीं आता बल्कि कुछ तो मुतवल्ली साहब अपने ज़माने के काफी इजज़दार और अच्छे ओहदे पर रहे हों ,। उन के साथ मामला कालम टोल का नहीं रहना चाहिए , कोशिश यह हो कि हमारा भाई अल्लाह के काम से आया है , अल्लाह के घरका कोई मामला है , इस के साथ अच्छे अंदाज़ से पेश आया जाए, और इन को कितनी बार बोर्ड में आना पड़ा इस का एहसास कर के आफिसरों को भी बताया जाए , एक साहब का जब एक अधिकारी के सामने जाना हुआ ,उन की सिर्फ सिगनिचर की ज़रूरत थी और टेबल पर वो फाइल तैयार थी , आठ दस बार हाज़िर होंगे के बाद , जब कि केस को देढ़ साल तो होचुका था ,और फाइल भी कई दिनों से बाबू के पास मौजूद थी , उस का कहना यही था कि मिटिंग होना बाकी है , अभी साइन नहीं हुई वगैरह , लेकिन जब एक दिन साहब से मुलाकात हुई और उन्होंने कहा कि सर मैं दस बार आचुका हूं , तो साहब ने उन की तरफ देख कर कहा कि मैं तो आप को पहली बार देख रहा हूं ,तब उनहो बाबू की तरफ इशारा किया ,और बाबू ने फ़ौरन फाईल निकाल कर दे दिया ,
हम समझते हैं कि परेशानियां सब को होती है , लेकिन बहर हाल सब्र से भी काम लिया जाए और अपनी शिक़ायत भी की जाए लेकिन ऐसा नहीं कि आप लोगों को मुशतइल कर दें ,और ग़लत फहमियां पैदा कर के सब के लिए मुश्किलात पैदा करें
अभी तो ऐसा लग रहा है कि हमारे सियासी ज़िम्मेदार भी काफ़ी दिलचस्पी ले रहे हैं ,और लोगों को राहत पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं ,
अल्लाहताला तमाम ही ज़िम्मेदारों के लिए आसानियां पैदा करे ,और वक्फ के कामों को बेहतर से बेहतर अनदाज़मे अंजाम देने की तौफीक दे,
हमें एक हिन्दी अखबार में हमारे मोहतरम क़ाज़ी साहब का लेख पढ़ने के बाद यह एहसास हुआ कि हम अपनी बात को संजिदा अंदाज़ में पेश करें और कुछ गलतियां हो भी रहीं हैं तो उन की तरफ ज़रुर निशानदेही करें ।
चुंकि मौसूफ की बातें अखबार में आचुकीं थी इसलिए हम ने भी अखबार के हवाले से अपने ख्यालात रखने की कोशिश की ।
हम बात करने और इज़हारे ख़्याल पर रोक लगाने या अपनी बात पेश करने पर पाबंदी की तरफ इशारा नहीं कर रहे हैं , बल्कि सिर्फ यह बताना चाहते हैं कि वक्फ का मामला बहुत अहम है ,इन जायदादों की हिफ़ाज़त होनी चाहिए , और अल्लाह के सामने भी जवाब दही का एहसास हो, और जो लोग इन खिदमात को अंजाम देरहे है , वो भी यह एहसास रखें कि यह बड़े नेकी का काम है।
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